Samajik Samarasata Aur Hamare Sant- सामाजिक समरसता और हमारे संत

38.00

जिस समय भारत की जनता विधर्मियों के दमन-चक्र से पीड़ित होकर रो रही थी, उस समय मध्य युगीन संतों ने अपने भक्ति काव्य द्वारा समाज में नव जीवन का संचार किया। उनके काव्य में समर्पण का भाव स्पष्ट दिखाई देता है। उन्होंने घोषणा की कि भगवान किसी की जाति या कुल नहीं देखता अपितु सच्चा श्रद्धाभाव ही मनुष्य को ईश्वर के निकट ले जाता है। इस प्रकार उन्होंने मानव-मानव के बीच पक्षपात की सभी दीवारें तोड़कर सामाजिक समरसता का प्रवाह बहा दिया। ऐसे संतों का जीवन अनुकरणीय है। पुस्तक में ऐसे ही बाईस महान संतों का उज्ज्वल जीवन चरित्र संकलित है।

जिस समय भारत की जनता विधर्मियों के दमन-चक्र से पीड़ित होकर रो रही थी, उस समय मध्य युगीन संतों ने अपने भक्ति काव्य द्वारा समाज में नव जीवन का संचार किया। उनके काव्य में समर्पण का भाव स्पष्ट दिखाई देता है। उन्होंने घोषणा की कि भगवान किसी की जाति या कुल नहीं देखता अपितु सच्चा श्रद्धाभाव ही मनुष्य को ईश्वर के निकट ले जाता है। इस प्रकार उन्होंने मानव-मानव के बीच पक्षपात की सभी दीवारें तोड़कर सामाजिक समरसता का प्रवाह बहा दिया। ऐसे संतों का जीवन अनुकरणीय है। पुस्तक में ऐसे ही बाईस महान संतों का उज्ज्वल जीवन चरित्र संकलित है।

Weight .100 kg
Dimensions 21.6 × .6 × 13.97 cm
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