जब जीरो दिया मेरे भारत ने तब दुनियाँ को गिनती आई…….” सामान्य व्यत्तिफ़ के लिए केवल एक फिल्मी गीत है । फ्पूर्णस्य पूर्णमादाय ……” उनके लिए शून्य की महत्ता को जीवन के व्यवहार में रोचक ढंग से अभिव्यत्तफ़ करने वाला संकलन है। वैदिक काल से ही भारत में गणित की उज्ज्वल परम्परा रही है जिसे अनेक महान गणितज्ञों ने अपने ज्ञान और अनुसन्धान से निरन्तर समृद्ध किया है। उस ज्ञान परम्परा को सामान्य व्यत्तिफ़ को समझ में आने वाली सरल भाषा में उनके जीवन व्यवहार के उपयोग से जोड़ते हुए प्रस्तुत करने का कार्य इस पुस्तक में किया गया है।
Puransay Purnamadai- पूर्णस्य पूर्णमादाय
₹35.00
जीवन में सब सुख की ही कमाना करते हैं, दुःख आने पर सब विचलित हो जाते है किंतु दुःख के मूल कारण को जान समझ कर उससे बचने का और स्थायी सुख का मार्ग खोजने का प्राय: कोई प्रयास नही करना चाहता। अध्यात्म के मार्ग को दुष्कर और सामान्य, संसारीजनों के लिए दुष्प्राप्य मान लिया जाता है। ऐसे में, संसार में रहते हुए सर्वसाधारण जीवनचर्या का निर्वाह करते हुए भी कैसे अध्यात्म के परम तत्व को अनुभव किया जा सकता है, इस प्रकार की जीवन दृष्टि की सप्ष्ट झलक मिलती है भगवान महावीर के जीवन चरित्र और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से। भगवान महावीर की 2550 वीं जन्म जयंती के अवसर पर उनकी शिक्षाएं इस देश की अगली पीढ़ी तक पहुंचे, इस दृष्टि से उनके जीवन चरित्र तथा शिक्षाओं को सरल -सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
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Dimensions | 21.6 × .5 × 13.97 cm |
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