मनुष्य जीवन को गढ़ने वाला परिवार ही होता है। बालक पर माता-पिता का जैसा प्रभाव पड़ता है, उसी के अनुसार वह जीवन की दिशा निर्धारित करता है। इस दृष्टि से विद्या भारती ने संस्कारों को परिवारों तक ले जाने की योजना बनाई है। परिवारों का वातावरण संस्कारवान बनना ही चाहिए तभी समाज से समस्त विकार दूर होंगे। बालक का आचरण परिवार में ढलकर ही निखरता है। घर ही बालक का सबसे पहला विद्यालय बने इसकी सारी संकल्पना इस पुस्तक में समाहित की गई है।
Ghar Hi Vidhyalya- घर ही विद्यालय
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जीवन में सब सुख की ही कमाना करते हैं, दुःख आने पर सब विचलित हो जाते है किंतु दुःख के मूल कारण को जान समझ कर उससे बचने का और स्थायी सुख का मार्ग खोजने का प्राय: कोई प्रयास नही करना चाहता। अध्यात्म के मार्ग को दुष्कर और सामान्य, संसारीजनों के लिए दुष्प्राप्य मान लिया जाता है। ऐसे में, संसार में रहते हुए सर्वसाधारण जीवनचर्या का निर्वाह करते हुए भी कैसे अध्यात्म के परम तत्व को अनुभव किया जा सकता है, इस प्रकार की जीवन दृष्टि की सप्ष्ट झलक मिलती है भगवान महावीर के जीवन चरित्र और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से। भगवान महावीर की 2550 वीं जन्म जयंती के अवसर पर उनकी शिक्षाएं इस देश की अगली पीढ़ी तक पहुंचे, इस दृष्टि से उनके जीवन चरित्र तथा शिक्षाओं को सरल -सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
Weight | .060 kg |
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Dimensions | 21.6 × .5 × 13.97 cm |
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