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AshtaDash Shlokhi Gita- अष्टादशश्लोकी गीता
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जीवन में सब सुख की ही कमाना करते हैं, दुःख आने पर सब विचलित हो जाते है किंतु दुःख के मूल कारण को जान समझ कर उससे बचने का और स्थायी सुख का मार्ग खोजने का प्राय: कोई प्रयास नही करना चाहता। अध्यात्म के मार्ग को दुष्कर और सामान्य, संसारीजनों के लिए दुष्प्राप्य मान लिया जाता है। ऐसे में, संसार में रहते हुए सर्वसाधारण जीवनचर्या का निर्वाह करते हुए भी कैसे अध्यात्म के परम तत्व को अनुभव किया जा सकता है, इस प्रकार की जीवन दृष्टि की सप्ष्ट झलक मिलती है भगवान महावीर के जीवन चरित्र और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से। भगवान महावीर की 2550 वीं जन्म जयंती के अवसर पर उनकी शिक्षाएं इस देश की अगली पीढ़ी तक पहुंचे, इस दृष्टि से उनके जीवन चरित्र तथा शिक्षाओं को सरल -सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
संसार में सभी ग्रन्थों में श्रीमद्भगवद्गीता का स्थान बहुत ऊँचा है। यह उपनिषदों का सार है और प्रस्थानत्रयी का एक अंग है। हमारे बालक नित्य प्रति गीता का पाठ करें और आध्यात्मिक पतन से मानवता को बचायें इस दृष्टि से गीता के 18 अध्यायों में से एक-एक श्लोक लेकर अष्टादश श्लोकी गीता की रचना की गयी है। प्रत्येक विद्यालय में प्रार्थना सभा में बालकों को इसका अर्थ समझाते हुए नियमित सस्वर पाठ कराया जाये तो संसार की सभी संघर्षमय परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करता हुआ परम नैतिकवान व्यक्ति बनकर समाज और मानवता की सेवा करने योग्य बन सकता है।
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