भक्ति और रीति- दोनों युगों में ब्रजभाषा प्रमुख काव्य- भाषा और सांस्कृतिक संपर्क की योजक भाषा रही है। ‘खड़ी बोली’ उसके एक अंग के रूप में जहाँ-तहाँ दृष्टिगोचर हो जाती थी परन्तु उसे विशेष महत्त्व प्राप्त न हो सका। साहित्यिक भाषा तत्सम शब्दों का आश्रय लिये बिना समर्थ नहीं हो सकती इसलिए उन्हें, जहाँ तक व्यवहार में संभव हो सकता है, ब्रजभाषा की प्रकृति के अनुसार स्थान दिया गया है। आज जब कविता के क्षेत्र में भी ब्रजभाषा श्रीहीन हो रही है, वहाँ सद्य-परम्पराहीन गद्य में उपन्यास जैसी रचना सुदुष्कर ही मानी जायेगी। फ्पूँछरी कौ लौठाय् रचना हिन्दी के चरणों में सहायक और पूरक रूप में की गई भेंट है।
Punchri ko Lota- पूंछरी कौ लौठा
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जीवन में सब सुख की ही कमाना करते हैं, दुःख आने पर सब विचलित हो जाते है किंतु दुःख के मूल कारण को जान समझ कर उससे बचने का और स्थायी सुख का मार्ग खोजने का प्राय: कोई प्रयास नही करना चाहता। अध्यात्म के मार्ग को दुष्कर और सामान्य, संसारीजनों के लिए दुष्प्राप्य मान लिया जाता है। ऐसे में, संसार में रहते हुए सर्वसाधारण जीवनचर्या का निर्वाह करते हुए भी कैसे अध्यात्म के परम तत्व को अनुभव किया जा सकता है, इस प्रकार की जीवन दृष्टि की सप्ष्ट झलक मिलती है भगवान महावीर के जीवन चरित्र और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से। भगवान महावीर की 2550 वीं जन्म जयंती के अवसर पर उनकी शिक्षाएं इस देश की अगली पीढ़ी तक पहुंचे, इस दृष्टि से उनके जीवन चरित्र तथा शिक्षाओं को सरल -सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
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Dimensions | 21.6 × .5 × 13.97 cm |
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