शिक्षा जीवन विकास की प्रक्रिया है। इसीलिए वह केवल बाल्यावस्था या युवावस्था तक सीमित नहीं होती, जीवनपर्यन्त चलती रहती है। भारतीय शिक्षा दर्शन के अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया जन्मपूर्व से प्रारंभ होकर जन्म-जन्मान्तर तक चलती रहती है। इस प्रकार की आदर्श तथा सातत्यपूर्ण शिक्षा की व्यवस्था रखने वाला मनुष्य समाज कभी दिशाहीन या निस्तेज नहीं हो सकता, सतत प्रगतिमान् रहता है। योगिराज श्रीअरविन्द तथा पुड्डुच्चेरि स्थित श्रीअरविन्द आश्रम की अधिष्ठात्री श्रीमाताजी ने जीवनपर्यन्त ऐसी जीवननिर्मात्री शिक्षा दिए जाने का वैचारिक अभियान मात्र नहीं चलाया, बल्कि आश्रमशाला के माध्यम से उसको व्यवहार में लाने का मार्ग भी दिखाया।
Sarvangi Shikshan- सर्वांगी शिक्षण
₹50.00
जीवन में सब सुख की ही कमाना करते हैं, दुःख आने पर सब विचलित हो जाते है किंतु दुःख के मूल कारण को जान समझ कर उससे बचने का और स्थायी सुख का मार्ग खोजने का प्राय: कोई प्रयास नही करना चाहता। अध्यात्म के मार्ग को दुष्कर और सामान्य, संसारीजनों के लिए दुष्प्राप्य मान लिया जाता है। ऐसे में, संसार में रहते हुए सर्वसाधारण जीवनचर्या का निर्वाह करते हुए भी कैसे अध्यात्म के परम तत्व को अनुभव किया जा सकता है, इस प्रकार की जीवन दृष्टि की सप्ष्ट झलक मिलती है भगवान महावीर के जीवन चरित्र और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से। भगवान महावीर की 2550 वीं जन्म जयंती के अवसर पर उनकी शिक्षाएं इस देश की अगली पीढ़ी तक पहुंचे, इस दृष्टि से उनके जीवन चरित्र तथा शिक्षाओं को सरल -सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
Weight | .110 kg |
---|---|
Dimensions | 21.6 × .6 × 13.97 cm |
Author | |
Height | |
No. of Pages | |
Language | |
Width |
Reviews
There are no reviews yet.