उपभोक्तावाद के चलते समस्त संसाधनों का अमर्यादित उपभोग पर्यावरण के संकट को और भी गंभीर बना देता है। विश्व के पर्यावरणविद जब धारणाक्षम विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) की चर्चा करते हैं तो यह विचार करना अपरिहार्य हो जाता है कि सृष्टि की ओर देखने की हमारी दृष्टि संरक्षण की होनी चाहिए अथवा उसके शोषण की? हमारे पर्यावरण के संरक्षण के लिये अत्यन्त सजगतापूर्वक प्रयास किये जाने आवश्यक हैं। इसी क्रम में पर्यावरण में विद्यमान विविध प्रकार के सुकोमल पारस्परिक संतुलन व उस सन्तुलन पर आसन्न संकटों को स्पष्ट करने के लिए पुस्तिका प्रकाशित की गई है।
Paryavaran Aur Hum- पर्यावरण और हम
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जीवन में सब सुख की ही कमाना करते हैं, दुःख आने पर सब विचलित हो जाते है किंतु दुःख के मूल कारण को जान समझ कर उससे बचने का और स्थायी सुख का मार्ग खोजने का प्राय: कोई प्रयास नही करना चाहता। अध्यात्म के मार्ग को दुष्कर और सामान्य, संसारीजनों के लिए दुष्प्राप्य मान लिया जाता है। ऐसे में, संसार में रहते हुए सर्वसाधारण जीवनचर्या का निर्वाह करते हुए भी कैसे अध्यात्म के परम तत्व को अनुभव किया जा सकता है, इस प्रकार की जीवन दृष्टि की सप्ष्ट झलक मिलती है भगवान महावीर के जीवन चरित्र और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से। भगवान महावीर की 2550 वीं जन्म जयंती के अवसर पर उनकी शिक्षाएं इस देश की अगली पीढ़ी तक पहुंचे, इस दृष्टि से उनके जीवन चरित्र तथा शिक्षाओं को सरल -सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
Weight | .090 kg |
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Dimensions | 21.6 × .5 × 13.97 cm |
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