हमारी समाज रचना की प्रथम ईकाई परिवार है। जहाँ परिवार नई पीढ़ी की आश्रयस्थली है, वहीं वह निर्माणस्थली भी है। आश्रयस्थली के रूप में संतान का आत्मीयता पूर्वक परिवार में लालन-पालन है तो निर्माणस्थली के नाते उनके भावी जीवन के निर्माण हेतु उनमें अच्छी आदतें डाली जाती हैं व संस्कारों की सुदृढ़ नींव रखी जाती है। संस्कार देने का काम वैसे तो परिवार के सभी बड़े लोग करते हैं, परन्तु उन सबमें दादा-दादी या नाना-नानी का मुख्य दायित्व रहता है। दादी और पोती के संवाद से युक्त सरल, सहज व सरस शैली में लिखी गई पुस्तक “बच्चों के राम” निश्चय ही बच्चों में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन से प्रेरणा लेने हेतु प्रेरित करेगी।
बच्चों के राम
₹30.00
Reviews
There are no reviews yet.