1947 में भारत की स्वाधीनता के समय भारत-पाकिस्तान के बीच हुए भौगोलिक विभाजन की त्रासदी में लाखों व्यक्तियों को अपनी जन्मभूमि छोड़कर अपने ही देश में ‘शरणार्थी’ बनना पड़ा । किन परिस्थितियों में विभाजन का निर्णय हुआ, उसके दोषी कौन थे, तत्कालीन सरकारी तंत्र ने कैसे परिस्थितियों को विषम बनाया और समाज को उस राजनैतिक ढुलमुलपन का दुष्परिणाम भोगना पड़ा_ साथ ही समाज में सदैव एक वर्ग ऐसा भी होता है जिनका बिना किसी लाभ-लोभ के निःस्वार्थ भाव से समाज के हितार्थ काम करने का लक्ष्य होता है, इन सबका इस उपन्यास में वर्णन है।
Vibhishika- विभीषिका
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जीवन में सब सुख की ही कमाना करते हैं, दुःख आने पर सब विचलित हो जाते है किंतु दुःख के मूल कारण को जान समझ कर उससे बचने का और स्थायी सुख का मार्ग खोजने का प्राय: कोई प्रयास नही करना चाहता। अध्यात्म के मार्ग को दुष्कर और सामान्य, संसारीजनों के लिए दुष्प्राप्य मान लिया जाता है। ऐसे में, संसार में रहते हुए सर्वसाधारण जीवनचर्या का निर्वाह करते हुए भी कैसे अध्यात्म के परम तत्व को अनुभव किया जा सकता है, इस प्रकार की जीवन दृष्टि की सप्ष्ट झलक मिलती है भगवान महावीर के जीवन चरित्र और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से। भगवान महावीर की 2550 वीं जन्म जयंती के अवसर पर उनकी शिक्षाएं इस देश की अगली पीढ़ी तक पहुंचे, इस दृष्टि से उनके जीवन चरित्र तथा शिक्षाओं को सरल -सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
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Dimensions | 21.6 × 1.0 × 13.97 cm |
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