हमारे मनीषियों ने जीवन का उद्देश्य पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति माना है और शिक्षा को इसका साधन बताया है। हम शिक्षा के द्वारा ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति किया करते थे परन्तु अंग्रेजी शासन ने अज्ञानवश इन चारों पुरुषार्थों में से केवल एक ‘अर्थ पुरुषार्थ’ की प्राप्ति का ही उद्देश्य रखा। हमारे देश की शिक्षा ने सदैव धर्म का अनुसरण किया है। अंग्रेज धर्म को समझ ही नहीं पाए, उन्होंने तो उसे अफीम बताकर शिक्षा की मूलधारा से ही बाहर कर दिया। परिणामस्वरूप धर्म के बिना शिक्षा दिग्भ्रमित हो गई। पुस्तक में आज की अर्थ प्रधान शिक्षा के दुष्परिणामों से विद्यार्थियों, अभिभावकों सहित प्रत्येक नागरिक को अवगत करवाते हुए जीवन निर्माण करनेवाली शिक्षा और व्यक्ति निर्माण, समाज व राष्ट्र निर्माण जैसे भुलाए गए विषयों के महत्व को अपने विभिन्न लेखों में भली-भाँति प्रतिपादित किया है, जिससे यह पुस्तक सबके लिए उपयोगी बन गई है।
प्रातः वन्दे
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