हर पीढ़ी पर रिश्ते भी कम होते जा रहे हैं। एक भाई – एक बहन जब बड़े होंगे तो इनके बच्चे कभी भी ताऊ, काका, मौसी जैसे रिश्तों से परिचित नहीं हो पाएंगे। ऐसे में इन रिश्तों को बच्चे खोजेंगे कहाँ ? गोपाल जी ने समाधान दिया है – समाज हमारा परिवार है। इसमें पनप रहे अविश्वास के वातावरण को यदि हम समाप्त कर सकें तो सारे रिश्ते पुनर्जीवित हो उठेंगे। यह बाल काव्य अनिवार्यतः भारतीय बच्चों के हाथों में पहुँचना चाहिए। यह पुस्तक एक प्रयोग है बच्चों को अपनी इस रिश्तों की विरासत से जोड़ने का।



Parivar Hamara- परिवार हमारा
₹35.00
हर पीढ़ी पर रिश्ते भी कम होते जा रहे हैं। एक भाई – एक बहन जब बड़े होंगे तो इनके बच्चे कभी भी ताऊ, काका, मौसी जैसे रिश्तों से परिचित नहीं हो पाएंगे। ऐसे में इन रिश्तों को बच्चे खोजेंगे कहाँ ? गोपाल जी ने समाधान दिया है – समाज हमारा परिवार है। इसमें पनप रहे अविश्वास के वातावरण को यदि हम समाप्त कर सकें तो सारे रिश्ते पुनर्जीवित हो उठेंगे। यह बाल काव्य अनिवार्यतः भारतीय बच्चों के हाथों में पहुँचना चाहिए। यह पुस्तक एक प्रयोग है बच्चों को अपनी इस रिश्तों की विरासत से जोड़ने का।
| Weight | .070 kg |
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| Dimensions | 24.38 × .5 × 17.78 cm |
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